झारखंड से राज्यसभा के लिए महुआ मांझी ने झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रत्याशी के तौर पर मंगलवार को अपना नामांकन पत्र दाखिल किया. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कांग्रेस की उम्मीदों को दरकिनार करते हए महुआ मांझी को जेएमएस से राज्यसभा के लिए उतारा है. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर कौन हैं महुआ मांझी जिनकी खातिर जेएमएम ने कांग्रेस की नारजगी का सियासी रिस्क ले लिया है?
डॉ महुआ मांझी हिन्दी की बड़ी साहित्यकारों में से एक हैं और समाजसेवा के क्षेत्र में जाना पहचाना नाम है. हेमंत सोरेन के परिवार की करीबी मानी जाती हैं और जेएमएम महिला मोर्चा की अध्यक्ष हैं. राज्यसभा प्रत्याशी बनाए जाने पर महुआ मांझी ने पार्टी सुप्रीमो शिबू सोरेन, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन समेत झामुमो के सभी नेताओं, विधायकों, सांसदों व कार्यकर्ताओं का आभार जताया है.
कांग्रेस को JMM ने दिया झटका
वहीं, महुआ मांझी को प्रत्याशी बनाए जाने पर कांग्रेस और जेएमएम के बीच सियासी दरार पैदा हो गई है, क्योंकि कांग्रेस इस सीट पर अपनी दावेदारी कर रही थी. झारखंड कांग्रेस के अध्यक्ष राजेश ठाकुर ने खुलकर कहा है कि दिल्ली में सोनिया गांधी के साथ हुई बैठक में कुछ तय हुआ था और रांची आने के बाद घोषणा कुछ और की गई. ऐसे में साफ जाहिर होता है कि जेएमएम और कांग्रेस के बीच मनमुटाव बढ़ सकता है.
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साहित्य से सियासत का सफर
जेएमएम से महुआ मांझी पहली महिला सदस्य होंगी, जो राज्यसभा पहुंचेंगी. 10 दिसंबर को जन्मीं महुआ मांझी ने रांची विश्वविद्यालय से पढ़ाई की है. मांझी समाजशास्त्र में स्नातकोत्तर और पीएचडी हैं. साहित्य से सियासत में आई महुआ मांझी ने राजनीति में लंबी छलांग लगाई है. महुआ जेएमएम के साथ काफी समय से जुड़ी हुई हैं. उन्होंने साल और के विधानसभा चुनाव में रांची सीट से चुनाव लड़ा था. हालांकि, दोनों ही बार बीजेपी के सीपी सिंह से उन्हें हार मुंह देखना पड़ा था.
महुआ मांझी झारखंड महिला आयोग की अध्यक्ष भी रह चुकी हैं. राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष के तौर पर उन्हें राज्यभर की महिलाओं से जुड़ने का मौका मिला, जिसके जरिए उन्होंने महिलाओं के बीच अपनी मजबूत पकड़ बनाई. ऐसे में पार्टी ने उन्हें उच्च सदन भेजकर महलाओं को साधने का बड़ा सियासी दांव चला है. मांझी ने कहा कि मैं की खतियानधारी हूं. जमीन से जुड़कर पिछले तीन दशक से काम कर रही हूं. साल से जेएमएम की महिला मोर्चा की अध्यक्ष हूं. ऐसे में महिलाओं को सम्मान देते हुए पिछले 22 साल से चल आ रही परंपरा तोड़ी है.
पहले उपन्यास से चर्चित
महुआ मांझी देश की प्रतिष्ठित साहित्याकर मानी जाती हैं. बांग्लाभाषी होने के बावजूद हिन्दी में ही उन्होंने लेखन कार्य किया है. शुरुआती दौर में वे कविताएं लिखती थीं. बाद में कहानी और उपन्यास लेखन में आगे बढ़ीं. वो अपने पहले उपन्यास 'मैं बोरिशाइल्ला' से ही चर्चा में आ गई थीं. यह उपन्यास बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम की पृष्ठभूमि पर लिखी गई थी. इसके बाद उनका उपन्यास टमरंग गोड़ा नीलकंठ' भी चर्चित हुआ, जो जादूगोड़ा में यूरेनियम खनन पर केंद्रित था.
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डॉ महुआ मांझी के उपान्यास के साथ-साथ उनकी कहानियां भी चर्चा में रहीं. इनमें वागर्थ, हंस, नया ज्ञानोदय समेत हिन्दी की अन्य साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं में छपती रही हैं, जिससे हिंदी साहित्य के क्षेत्र में अपनी अलग पहचान बनाई. हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने को लेकर साल में उन्हें 'इंटरनेशनल कथा यूके अवार्ड' से सम्मानित किया गया. इसके बाद उन्हें विश्व हिंदी सेवा सम्मान, फणीश्वरनाथ रेणु अवार्ड, साहित्य सम्मेलन शताब्दी सम्मान मिला. महुआ मांझी ने सहित्य के साथ-साथ समाज सेवा की दिशा में बेहतर काम किया है.
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